जम्मू-कश्मीर का चुनावी इतिहास : जानें कब-कब किसकी बनी सरकार और कब आया राष्ट्रपति शासन

Thursday, Sep 12, 2024-01:48 PM (IST)

जम्मू डेस्क: जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। आजादी के बाद से भारत में विलय होने के बाद जम्मू-कश्मीर में कई सरकारें बनीं और गिरीं। कई बार तो जनता को राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। जम्मू-कश्मीर के चुनावी इतिहास के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

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जम्मू-कश्मीर में 12 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। पहले इन विधानसभा चुनावों को संविधान सभा चुनाव कहा जाता था। जम्मू-कश्मीर में इन चुनावों की शुरूआत 1951 में हुई थी। इस समय चुनाव जीतने वाले को मुख्यमंत्री नहीं बल्कि प्रधानमंत्री कहा जाता जाता था लेकिन 1965 में प्रधानमंत्री का पद बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय 26 अक्तूबर, 1947 को हुआ था। इस समय दौरान 1947 से लेकर 5 मार्च, 1948 तक मेहरचंद महाजन राज्य के प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद शेख अब्दुल्ला (शेर-ए-कश्मीर) नए प्रधानमत्री बने। जम्मू-कश्मीर में आज तक हुए सभी चुनावों के बारे में जानकारी इस प्रकार है -

1951 में पहली बार हुए चुनाव

जम्मू-कश्मीर में पहली बार चुनाव 1951 में हुए। इन संविधान सभा चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस की स्थापना करने वाले शेख अब्दुल्ला सभी 75 सीटों पर विजयी रहे और प्रधानमंत्री बने। कुछ समय बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया और वह लगभग 10 सालों तक जेल में रहे। इस दौरान बख्शी गुलाम मोहम्मद ने विरोधी नेताओं के साथ सत्ता की बागडोर हाथ में ली। गुलाम मोहम्मद 9 अगस्त, 1953 तक प्रधानमंत्री रहे।

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1957 के चुनाव

दूसरी बार जम्मू-कश्मीर में चुनाव 1957 में हुए। इस दौरान एन.सी. ने 68 सीटें जीतीं जबकि प्रजा परिषद ने 5, हरिजन मंडल और निर्दलीय उम्मीदवार ने एक-एक सीट हासिल की। इस दौरान बख्शी गुलाम मोहम्मद फिर से राज्य के प्रधानमंत्री बने। इस समय तक संविधान सभा विधानसभा में बदल चुकी थी।

1962 के चुनाव

जम्मू-कश्मीर में 1962 में फिर से नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनी। पार्टी ने 70 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि प्रजा परिषद को 3 और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 2 सीटें हासिल की। इसके बाद 12 अक्तूबर, 1963 को गुलाम मोहम्मद की जगह ख्वाजा शम्सुद्दीन राज्य के नए प्रधानमंत्री बने लेकिन इनका कार्यकाल लंबे समय तक नहीं टिका और 29 फरवरी, 1964 को इन्हें पद से हटा दिया गया। इस समय एन.सी. की काफी सीटें कांग्रेस में चली गई और जी.एम. सादिक को नया प्रधानमंत्री चुना गया। मार्च 1965 को प्रधानमंत्री का पद मुख्यमंत्री के पद से बदल दिया गया।

1967 के चुनाव

जम्मू-कश्मीर में इन चुनावों दौरान कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया। इस दौरान कांग्रेस की झोली में 61 सीटें, एन.सी. को 8 और भारतीय जनसंघ को 3 सीटें मिलीं। इन चुनावों में भी जी.एम. सादिक को मुख्यमंत्री चुना गया लेकिन 12 दिसंबर, 1971 को उनका निधन हो गया। इसके बाद सैयद मीर कासिम राज्य के नए मुख्यमंत्री बने।

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1972 के चुनाव

जम्मू-कश्मीर में 1972 में हुए चुनावों दौरान फिर से कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ। इस दौरान कांग्रेस ने 58, भारतीय जनसंघ ने 3, जमात-ए-इस्लामी ने 5 और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 9 सीटें हासिल की। इस बार भी सैयद मीर कासिम  मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने 25 फरवरी, 1975 तक राज्य की बागडोर संभाली लेकिन प्रधानमत्री इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच हुए समझौते के बाद शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री घोषित किया गया जो कि कुछ समय तक रहा। इसके बाद 26 मार्च, 1977 से 9 जुलाई, 1977 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।

1977 के चुनाव

इन चुनावों दौरान जम्मू-कश्मीर में फिर नेशनल कांफ्रेंस ने जीत हासिल की। एन.सी. ने 76 सीटों में से 47 सीटें हासिल कीं जबकि कांग्रेस को 11, जनता पार्टी को 13, जमात-ए-इस्लामी को एक और निर्दलीय उम्मीदवारों को 4 सीटें मिलीं। इस दौरान शेख अब्दुल्ला फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए और उन्होंने विधानसभा चुनावों का अंतराल 5 से 6 साल तक बढ़ा दिया। 1982 में शेख अब्दुल्ला का निधन हो गया जिसके बाद उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने।

1983 के चुनाव

इन चुनावों में भी एन.सी. ने जीत हासिल की। इस दौरान एन.सी. को 46 सीटें, कांग्रेस को 26 सीटें मिलीं। इसके बाद एन.सी. का एक गुट अलग हो गया जिसने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन कांग्रेस ने फिर समर्थन वापिस ले लिया और सरकार गिर गई। इस दौरान 6 मार्च 1986 से 7 नवंबर 1986 तक राष्ट्रपति शासन रहा।

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1987 के चुनाव

सरकार गिरने के बाद 1987 में फिर चुनाव लड़े गए। इस दौरान जम्मू-कश्मीर में एन.सी. और कांग्रेस ने गठबंधन में सरकार बनाई। इन चुनावों में एन.सी. को 40, कांग्रेस को 26, भारतीय जनता पार्टी को 2 और निर्दलीय उम्मीदवारों को 4 सीटें मिलीं। इन चुनावों के बाद फारूक अब्दुल्ला नए मुख्यमंत्री चुने गए। 1990 में फिर से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।

1996 के चुनाव

जम्मू-कश्मीर में 1995 में होने वाले चुनावों के प्रस्ताव को चुनाव आयोग द्वारा ठुकरा दिया गया नतीजतन चुनाव 1996 में हुए। इस दौरान 87 सीटों में से एन.सी. ने 57, कांग्रेस ने 7, भाजपा ने 8, जनता दल ने 5, बहुजन समाज पार्टी ने 4, पैंथर्स पार्टी ने एक, जम्मू-कश्मीर अवामी लीग ने एक और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 2 सीटें हासिल कीं। इस बार फिर फारूक अब्दुल्ला को राज्य का मुख्यमंत्री चुना गया। 18 अक्तूबर, 2002 से लेकर 2 नवंबर, 2002 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।

2002 के चुनाव

जम्मू-कश्मीर में इन चुनावों दौरान एन.सी. को 28, कांग्रेस को 20, पी.डी.पी. को 16, पैंथर्स पार्टी को 4, माकपा को 2, बसपा और भाजपा को एक-एक सीटें मिलीं। पी.डी.पी. और कांग्रेस ने गठबंधन कर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद को मुख्यमंत्री चुना गया। कांग्रेस और पी.डी.पी. में 3-3 साल तक मुख्यमंत्री बनने का समझौता हुआ था लेकिन जब कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने तो पी.डी.पी. ने समर्थन वापस ले लिया। 11 जुलाई, 2008 को फिर से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।

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2008 के चुनाव

इन चुनावों में किसी को बहुमत नहीं मिला। एन.सी. ने 28, पी.डी.पी. ने 21, कांग्रेस ने 17, भाजपा ने 11 और अन्य को 10 सीटें मिलीं। कांग्रेस के समर्थन से शेख अब्दुल्ला के पोते और फारूक अब्दुल्ला के सुपुत्र उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री चुने गए।

2014 के चुनाव

जम्मू-कश्मीर के इन चुनावों में पी.डी.पी. ने 28, भाजपा ने 25, एन.सी. ने 15, कांग्रेस ने 12 सीटें हासिल कीं। भाजपा और पी.डी.पी. ने गठबंधन बनाकर सरकार बनाई और महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाया लेकिन 2018 में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया।

गौरतलब है कि 2014 में सरकार गिरने के बाद जम्मू-कश्मीर में दोबारा विधानसभा चुनाव नहीं हुए। अब 10 सालों के अंतराल के बाद फिर से केंद्र शासिक प्रदेश में चुनाव होने जा रहे हैं। इस दौरान देखना यह होगा कि किस पार्टी की सरकार बनेगी और मुख्यमंत्री का ताज किसके सिर सजेगा।

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव शैड्यूल

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के तहत 18 सितंबर को मतदान होगा जबकि दूसरे चरण के तहत 25 सितंबर और तीसरे चरण के तहत एक अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि चुनाव के नतीजे 8 अक्तूबर को घोषित किए जाएंगे।

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Content Writer

Sunita sarangal

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