Katra-Srinagar Train: डोगरा शासकों का सपना होगा साकार, ब्रिटिश काल की अधूरी रेलवे परियोजना हुई पूरी
Thursday, Jun 05, 2025-03:50 PM (IST)

जम्मू/श्रीनगर : शिवालिक और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से कश्मीर घाटी तक ट्रेन चलाने की एक सदी से भी पुरानी महत्वाकांक्षी योजना शुक्रवार को उस समय हकीकत में बदल जाएगी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कटड़ा से कश्मीर के लिए वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे तथा चिनाब नदी पर बने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे आर्च ब्रिज का भी उद्घाटन करेंगे।
वरिष्ठ रेलवे अधिकारी ने कहा, ‘19वीं सदी में डोगरा महाराजाओं द्वारा प्रस्तावित एक विजन अब स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा उपलब्धियों में से एक बन गया है।’ महाराजा हरि सिंह के पौत्र एवं पूर्व सदर-ए-रियासत डा. कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि उन्हें गर्व है कि 130 साल पहले बनाई गई डोगरा शासक की योजना आखिरकार साकार हुई है। उन्होंने बताया कि कश्मीर घाटी तक रेलवे लाइन परियोजना की परिकल्पना एवं रूपरेखा महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में ही तैयार की गई थी। उन्होंने कहा कि यह न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के लोगों के लिए गर्व की बात है कि हमारे प्रधानमंत्री इस सपने को साकार करेंगे।
डोगरा शासक ने ब्रिटिश इंजीनियरों को कश्मीर तक रेलवे मार्ग के सर्वेक्षण का सौंपा था काम
उल्लेखनीय है कि डोगरा शासक ने ब्रिटिश इंजीनियरों को कश्मीर तक रेलवे मार्ग के लिए सर्वेक्षण करने का काम सौंपा था। यह महत्वाकांक्षी परियोजना थी एक सदी से भी अधिक समय तक अधूरी रही। उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर उसे क्रियान्वित करने के लिए तीन ब्रिटिश इंजीनियरों को नियुक्त किया। हालांकि वर्ष 1898 से 1909 के बीच 11 वर्षों में तैयार की गई तीन में से दो रिपोर्टों को खारिज कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर अभिलेखागार विभाग के विशेष दस्तावेजों के अनुसार कश्मीर तक रेल संपर्क का विचार पहली बार 1 मार्च 1892 को महाराजा द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिसके बाद जून 1898 में ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म एस.आर. स्कॉट स्ट्रैटन एंड कंपनी को सर्वेक्षण करने और परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए नियुक्त किया गया।
1925 में महाराजा प्रताप सिंह के निधन के कारण परियोजना को स्थायी रूप से कर दिया था स्थगित
इस सिलसिले में प्रस्तुत पहली रिपोर्ट में जम्मू एवं कश्मीर घाटी के बीच दो फुट छह इंच की एक पतली लाइन पर भाप इंजन की रेल की सिफारिश की गई थी परंतु चुनौतीपूर्ण ऊंचाई के स्तरों के कारण इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। इसके उपरांत डब्ल्यू.जे. वेटमैन द्वारा 1902 में प्रस्तुत एक अन्य प्रस्ताव में झेलम नदी के किनारे एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) से कश्मीर को जोड़ने वाली एक रेलवे लाइन के सुझाव को भी व्यवहारिक नहीं माना गया। वहीं वाइल्ड ब्लड द्वारा प्रस्तुत तीसरे प्रस्ताव में रियासी क्षेत्र से होकर चिनाब नदी के साथ एक रेलवे संरेखण की सिफारिश संबंधी रिपोर्ट को मंजूरी दी गई थी।
इसके बाद ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल डी.ई. बॉरेल को स्थानीय कोयला भंडार पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया। दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 1925 में महाराजा प्रताप सिंह के निधन एवं बढ़ते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कारण परियोजना को स्थायी रूप से स्थगित कर दिया गया। इसके लगभग 6 दशक बाद पुनर्जीवित हुए इस विचार के नतीजे में वर्ष 1983 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने जम्मू-ऊधमपुर-श्रीनगर रेलवे लाइन की आधारशिला रखी।
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