J&K: कश्मीरी पंडितों का 35 वर्षों का इंतजार, घाटी जाने की आस

Wednesday, Apr 16, 2025-06:27 PM (IST)

जम्मू : कश्मीर घाटी आखिरकार एक निर्बाध रेलवे लाइन के माध्यम से शेष भारत से भौतिक रूप से जुड़ने के लिए तैयार है, जिसका उद्घाटन स्वयं प्रधान मंत्री द्वारा किया जाएगा। यह लंबे समय से प्रतीक्षित लिंक सुलभता, विकास और राष्ट्रीय एकीकरण के एक नए युग की शुरुआत है। फिर भी, जब राष्ट्र इस मील के पत्थर का जश्न मना रहा है, तो विस्थापित कश्मीरी पंडित (के.पी.) समुदाय के बीच एक मार्मिक प्रश्न गूंज रहा है कि वे भी अपनी मातृभूमि से स्थायी रूप से कब जुड़ेंगे? दशकों से, वे न केवल बुनियादी ढांचे के लिए, बल्कि अपनेपन, सम्मान और न्याय की भावना के लिए भी इंतजार कर रहे हैं। कश्मीरी पंडितों को अभी भी अपनी मातृभूमि से स्थायी रूप से जुड़ने इंतजार है।

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35 वर्षों से पुनर्वास की आस

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय के. टिक्कू ने पंजाब केसरी को बताया कि पिछले 35 वर्षों से कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास अभी तक बयानबाजी ही बना हुआ है, चुनावों के दौरान राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है। कश्मीरी पंडितों के लिए एक वास्तविक पुनर्वास नीति बनाने पर विधानसभा में हाल ही में चर्चा हुई। ऐसी चर्चाएं अक्सर वास्तविक कार्रवाई में तबदील हुए बिना विधान मंडलों तक ही सीमित रह जाती हैं। कश्मीरी पंडितों को 1990 की त्रासदी अभी तक नहीं भूली है। के.पी. सिर्फ यादों तक सीमित रह गए हैं, जो एक ऐसे घर की लालसा कर रहे हैं जिसे वे अब अपना नहीं कह सकते। टिक्कू ने कहा कि समुदाय के कई लोग, खास तौर पर युवा, कश्मीर से बाहर चले गए हैं। समय के साथ उनका जमीन से जुड़ाव कमजोर होता जा रहा है। अगर कोई नीति सिर्फ अस्तित्व से ज्यादा कुछ नहीं देती है, तो उन्हें वापस लौटने के लिए कैसे मनाया जाएगा।

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न्याय के बिना पुनर्वास केवल एक मृगतृष्णा है : संजय टिक्कू

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के माध्यम से भारत के गृह मंत्री को एक विस्तृत ज्ञापन प्रस्तुत किया है, जिसमें अगले 60 दिनों के भीतर एक ठोस पुनर्वास रोडमैप की मांग की गई है। टिक्कू ने कहा कि निर्वासन का रास्ता बहुत लंबा हो गया है। अब समय आ गया है कि भारत सरकार यह साबित करे कि कश्मीरी पंडित सिर्फ चुनावी घोषणापत्रों में एक भूला हुआ फुटनोट नहीं हैं, बल्कि अपनी मातृभूमि के असली उत्तराधिकारी हैं। न्याय में देरी न्याय से वंचित होने के बराबर है और कश्मीरी पंडितों के लिए, न्याय तीन दशकों से भी ज्यादा समय से वंचित है। अब समिति के पास संकट में फंसे समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। न्याय के बिना पुनर्वास केवल एक मृगतृष्णा है।

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Content Editor

Neetu Bala

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