Alert! इन जगहों पर सबसे ज्यादा फटते हैं बादल, सफर से पहले पढ़ लें खबर
Tuesday, Aug 19, 2025-03:19 PM (IST)

जम्मू डेस्क : देश के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह एक प्राकृतिक आपदा है जिसमें कुछ ही मिनटों में भारी बारिश होती है और नदियां-नाले उफान पर आ जाते हैं। इसके चलते अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं सामने आती हैं, जो जान-माल का भारी नुकसान करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के कई इलाके ऐसे हैं जहां बादल फटने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।
देश के सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाके
- जम्मू-कश्मीर: अमरनाथ गुफा, गांदरबल, पहलगाम और किश्तवाड़ जैसे क्षेत्र बार-बार प्रभावित होते हैं। 2022 में अमरनाथ यात्रा के दौरान बादल फटने से कई लोगों की जान चली गई थी।
- लद्दाख: 2010 में लेह में बादल फटने से 200 से अधिक लोग मारे गए थे और भारी तबाही हुई थी।
- हिमाचल प्रदेश: कुल्लू, किन्नौर, चंबा और धर्मशाला जैसे इलाकों में हर साल मानसून के दौरान खतरा बना रहता है। 2025 में सिर्फ मंडी जिले में ही 14 बार बादल फटे।
- सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश: तवांग और ऊपरी सियांग जैसे इलाकों से भी समय-समय पर बादल फटने की घटनाएं सामने आती हैं।
- केरल: 2018 में इडुक्की और वायनाड में बादल फटने के बाद आई बाढ़ में 324 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
- उत्तराखंड: केदारनाथ में 2013 की त्रासदी अभी तक लोगों के जेहन में ताजा है। इसके अलावा चमोली, टिहरी और पिथौरागढ़ भी जोखिम वाले इलाके माने जाते हैं। वहीं धारली में 5 अगस्त 2025 को जमीन खिसकने की घटना हुई थी।
- महाराष्ट्र: 2005 में मुंबई में एक ही दिन में 944 मिमी बारिश दर्ज की गई थी, जिसने पूरे शहर को ठप कर दिया था।
होने वाले खतरे
- अचानक बाढ़ से घर, सड़कें और वाहन बह जाते हैं।
- भूस्खलन से गांव और संपत्तियां दब जाती हैं।
- इंसान और मवेशियों की जानें जाती हैं।
- संचार (मोबाइल नैटवर्क) और बिजली व्यवस्था ठप हो जाती है।
- किसानों को फसलों का भारी नुकसान उठाना पड़ता है। खेत ढूब जाते हैं।
- जंगल और नदियों को भी नुकसान पहुंचता है।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बादल फटने की घटनाएं और तेजी से बढ़ रही हैं। बढ़ते तापमान से हवा में नमी अधिक होती है, जो अचानक भारी बारिश में बदल जाती है। हिमालय की ऊंचाई वाली भौगोलिक बनावट नमी वाली हवाओं को रोक लेती है, जिससे बादल फटते हैं। मानसून और पश्चिमी विक्षोभ का मेल मौसम को और अस्थिर बनाता है। ग्लेशियर पिघलने से वातावरण में नमी बढ़ रही है। जंगलों की कटाई और अंधाधुंध निर्माण कार्य भी खतरों को कई गुना बढ़ा रहे हैं।