नेशनल कांफ्रेंस पर बन रहा दबाव, खतरे से खाली नहीं राजनीतिक बंदियों की रिहाई
Friday, Nov 15, 2024-12:31 PM (IST)
जम्मू: जम्मू-कश्मीर में चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों ने घोषणा पत्र में राजनीतिक बंदियों की रिहाई को प्राथमिक मुद्दा बनाया, लेकिन जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक इतिहास पर नजर डाली जाए तो जितने भी क्षेत्रीय दल जम्मू-कश्मीर की सत्ता में रहे हैं उन्होंने अपने कार्यकाल में इन राजनीतिक बंदियों को कभी रिहा नहीं किया, लेकिन अब उनकी रिहाई को लेकर ढिंढोरा पीट रहे हैं।
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विधानसभा चुनाव में नैशनल कॉन्फ्रैंस और पी.डी.पी. ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में कहा कि सत्ता में आने पर वह राजनीतिक बंदियों को रिहा करेंगे, लेकिन अब जब नैशनल कॉन्फ्रैंस ने सत्ता संभाल ली है तो उसको कश्मीर के क्षेत्रीय दल, जिनमें पी.डी.पी. भी शामिल है, दबाव बना रहे हैं कि राजनीतिक बंदियों की रिहाई की जाए। इन राजनीतिक बंदियों पर आतंकवाद, अलगाववाद एवं युवाओं को भारत सरकार के खिलाफ भड़काने के लिए विभिन्न धाराओं के तहत बंदी बनाया गया है और ये राजनीतिक बंदी कश्मीर में अशांति फैलाने में सबसे अधिक सक्रिय रहे हैं। समय-समय पर ये इन राजनीतिक दलों की चुनाव में मदद भी परोक्ष ढंग से करते रहे।
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प्रदेश में गृह विभाग उप-राज्यपाल के पास है और वही इस बारे में निर्णय लेंगे कि किस राजनीतिक बंदी को रिहा किया जाए। दरअसल, जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर काबिज रहने वाले नैशनल कॉन्फ्रैंस, कांग्रेस और पी.डी.पी. अपने कार्यकाल में कश्मीर में अशांति फैलाने वाले इन राजनीतिक बंदियों को रिहा नहीं कर पाए। वर्ष 2010 में कश्मीर में फैली अशांति के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कानून व्यवस्था को नियंत्रण में करने के लिए ऐसे कई नेताओं और युवकों को हिरासत में लिया जो पथराव एवं अशांति फैलाने के लिए युवाओं को भड़का रहे थे। बाद में इन युवकों के अभिभावकों की ओर से लिखित में यह आश्वासन दिया गया कि भविष्य में वे ऐसी किसी गतिविधि में भाग नहीं लेंगे जिससे कानून व्यवस्था बिगड़े। लिखित में आश्वासन मिलने के बाद युवकों को रिहा किया गया।
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इसी तरह जो राजनीतिक बंदी जेल में बंद हैं वे भी कश्मीर में उपद्रव एवं अशांति फैलाने में भागीदार हैं। ऐसे में उनकी रिहाई को लेकर भी यह हलफनामा लेना होगा कि वे कश्मीर में ऐसा कोई बयान नहीं देंगे जिससे तनाव का माहौल बने और अशांति फैले। नैशनल कॉन्फ्रैंस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में इन राजनीतिक बंदियों की रिहाई की बात कही है लेकिन उसके लिए इन राजनीतिक बंदियों को रिहा करना आसान नहीं होगा। जिस ढंग से पिछले कुछ दिनों में कश्मीर में खासकर श्रीनगर शहर में आतंकी घटनाएं देखने को मिली हैं, उसको देखते हुए इन राजनीतिक बंदियों को रिहा करना भी खतरा मोल लेने के बराबर होगा और जो सरकार जनता के हित में काम करना चाहती है उसे अपनी बाकी घोषणाओं को अमल में लाने में मुश्किल होगी लेकिन उनकी रिहाई का दारोमदार उप-राज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय पर निर्भर करेगा कि वह किन राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मंजूरी प्रदान करनी है।
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