J&K: बुरे फंसे MLA वाहिद पारा, विधानसभा ने विधायक को भेजा Notice
Saturday, Sep 13, 2025-02:04 PM (IST)

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर विधानसभा ने पुलवामा के विधायक और पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (PDP) नेता वाहिद पारा को कारण बताओ नोटिस भेजा है। यह नोटिस इसलिए भेजा गया है क्योंकि श्री वाहिद ने विधानसभा सचिवालय पर डोडा विधायक मेहराज मलिक को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत नजरबंद किए जाने का 'समर्थन' करने का आरोप लगाया था। यह नोटिस विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर के निर्देश पर पारा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के एक पोस्ट के संदर्भ में जारी हुआ, जिसमें उन्होंने PSA के तहत डोडा विधायक मेहराज मलिक की हिरासत में लिए जाने की सूचना के प्रकाशन को शर्मनाक आत्मसमर्पण और लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया था।
पारा ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया था और चेतावनी दी थी कि आज ये मेहराज है कल यह आप भी हो सकते हैं। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को सोमवार PSA के तहत हिरासत में लिया गया था और सार्वजनिक शांति भंग करने के आरोप में जेल भेज दिया था। उनकी नजरबंदी से डोडा में प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
पारा ने विधायक की नजरबंदी के तुरंत बाद एक्स पर लिखा,'शर्मनाक आत्मसमर्पण। एक निर्वाचित विधायक के खिलाफ विधानसभा सचिवालय द्वारा पी.एस.ए. का समर्थन करना लोकतंत्र पर सीधा हमला है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को कार्रवाई करनी चाहिए, विधायकों की संस्था, लोगों की अंतिम एजैंसी को चुप नहीं होने देना चाहिए। आज यह मेहराज है, कल यह आप हो सकते हैं।' सचिवालय के मुताबिक पारा की टिप्पणी तथ्यों पर आधारित नहीं थी और गलत जानकारी/विकृत तथ्यों के साथ जनता को गुमराह करने के बराबर थी, जिसने संस्था की गरिमा को कम किया और अध्यक्ष के कार्यालय की निष्पक्षता पर संदेह पैदा किया है। विधानसभा ने स्पष्ट किया कि श्री मलिक की नजरबंदी के बारे में बुलेटिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 260 के तहत जारी किया गया था, जिसके तहत अध्यक्ष को सदस्यों के बारे में इस तरह की जानकारी देने की आवश्यकता होती है।
सचिवालय ने प्रैस विज्ञप्ति में कहा, 'किसी भी माननीय सदस्य की गिरफ्तारी या हिरासत में लेने में विधानसभा सचिवालय की कोई भूमिका नहीं है' नोटिस में कहा गया कि निष्पक्षता ही अध्यक्ष कार्यालय की जरूरी विशेषता होती है और इस सिद्धांत पर किसी भी हमले को हमेशा विशेषाधिकार का उल्लंघन या सदन की अवमानना माना जाता है।
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